|| अमेरिका में डेंड्रीमर अनुसंधान केंद्र की कमान संभालेंगे भारतीय मूल के वैज्ञानिक डॉ. मयंक || | संयुक्त राज्य अमेरिका के मिशिगन में मिला निदेशक पद-संस्थान के पहले भारतीय निदेशक | • संस्थान के इतिहास में पहली बार भारतीय मूल के वैज्ञानिक को निदेशक के रूप में मिली नियुक्ति। • वर्ष 2002 से डॉ. डोनाल्ड टॉमालिया ही संस्था के सीईओ एवं निदेशक रहे। • COVID-19 महामारी के समय इसी अनुसंधान केंद्र में डॉ. मयंक ने वैज्ञानिक के रूप में किया था कार्य आरंभ। • अब डॉ. डोनाल्ड टॉमालिया-सीईओ एवं डॉ. मयंक सिंह-निदेशक के रूप में देंगे सेवाएं। मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश): वैज्ञानिक अनुसंधान में उत्कृष्ट योगदान के लिए मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश के भारतीय मूल के वैज्ञानिक डॉ. मयंक सिंह को संयुक्त राज्य अमेरिका के “नेशनल डेंड्रिमर एंड नैनोटेक्नोलॉजी सेंटर” का “निदेशक” (डायरेक्टर) नियुक्त किया गया। जिन्होंने भारतीय समयानुसार मंगलवार, 15 अप्रैल 2025 की शाम 7:00 बजे, औपचारिक रूप से अपना पदभार ग्रहण किया। इस नियुक्ति की आधिकारिक घोषणा केंद्र के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) डॉ. डोनाल्ड टॉमालिया द्वारा की गई। यह नियुक्ति नेशनल डेंड्रिमर एंड नैनोटेक्नोलॉजी सेंटर द्वारा जारी आधिकारिक कार्यालय ज्ञापन और उनकी आपसी गोपनीयता समझौतों के तहत संपन्न हुई। यह केंद्र मिशिगन राज्य के माउंट प्लीज़ेंट स्थित नैनोसिन्थॉन्स परिसर में संचालित है और डेंड्रीमर विज्ञान एवं नैनो-सक्षम समाधानों के क्षेत्र में अपनी अग्रणी अनुसंधान एवं अनुप्रयोग आधारित उपलब्धियों के लिए वैश्विक स्तर पर विख्यात है।
डॉ. मयंक ने COVID-19 महामारी के दौरान इसी संस्थान से अपने वैज्ञानिक यात्रा की शुरुआत की थी। उन्होंने अपने मेहनत, उत्कृष्ट वैज्ञानिक दृष्टिकोण, अनुसंधान और समर्पण के बल पर वैज्ञानिक से वरिष्ठ वैज्ञानिक और फिर प्रधान वैज्ञानिक की भूमिका तक का सफर तय किया। प्रत्येक स्तर पर उन्होंने डेंड्रीमर एवं नैनोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिए, जो वैश्विक शोध एवं अनुप्रयोगों में दिखाई देते हैं। अब वे अपने दूरदर्शी नेतृत्व क्षमता के साथ इस संस्थान का नेतृत्व एवं निर्देशन कर रहे हैं। डॉ. मयंक ने टेलीफोनिक कॉल पे संक्षेप में बताते हुए कहा की मेरा उद्देश्य डेंड्रिमर तकनीक को न केवल अगली पीढ़ी तक पहुँचाना है, बल्कि उसे इस प्रकार सरल और सुलभ बनाना है कि शैक्षणिक अनुसंधान, और उद्योग दोनों के लिए यह सहजतापूर्वक शोधकर्ता एवं वैज्ञानिकों द्वारा अपनाने योग्य बन सके। साथ ही, नेशनल डेंड्रीमर एंड नैनोटेक्नोलॉजी सेंटर को डेंड्रीमर-आधारित तकनीकों के अनुसंधान, विकास और व्यवसायीकरण के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व की स्थिति में स्थापित करना भी है। साथ ही भारत-अमेरिका के बीच प्रभावशाली वैज्ञानिक सहयोग, अनुसंधान का अनुवाद और अगली पीढ़ी की उपचारात्मक तकनीकों के विकास को प्रोत्साहित करना है, जो वैश्विक स्वास्थ्य सेवाओं के भविष्य को आकार दें।
न्यूज़ अड्डा क्लिक के टीम से फोन कॉल पर बात करते हुए “नेशनल डेंड्रिमर एंड नैनोटेक्नोलॉजी सेंटर” के संस्थापक एवं सीईओ, डॉ. डोनाल्ड टोमालिया ने डॉ. मयंक सिंह की नियुक्ति पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा, यह डॉ. मयंक के असाधारण प्रयासों और दूरदर्शी सोच का ही परिणाम है, जिसके कारण उन्होंने यह महत्वपूर्ण पद प्राप्त किया है। उनकी वैज्ञानिक समझ, नेतृत्व क्षमता और संस्थान के प्रति ईमानदारी, नैतिकता, प्रतिबद्धता ने उन्हें इस भूमिका के लिए पूर्णतः उपयुक्त बना दिया है। आज, 86 वर्ष की आयु में, मैं डॉ. मयंक सिंह को मेरे द्वारा स्थापित अनुसंधान केंद्र का “निदेशक” बनते देखकर अत्यंत प्रसन्न हूं। मैं उन्हें हार्दिक बधाई देता हूँ और उनके नेतृत्व में नेशनल डेंड्रिमर एंड नैनोटेक्नोलॉजी सेंटर के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ। डॉ. टोमालिया ने कहा उन्होंने इस संस्थान की स्थापना वर्ष 2002 में यूएस-आर्मी रिसर्च लैबोरेटरी द्वारा सेंट्रल मिशिगन यूनिवर्सिटी एवं डेनड्रिटिक नैनोटेक्नोलॉजी इंकॉर्पोरेशन (डीएनटी) और डेंड्रिटेक इंकॉर्पोरेशन के सहयोग से किया था, जिसका उद्देश्य डेंड्रीमर-आधारित तकनीकों के उपयोग से जुड़े विभिन्न अनुसंधान गतिविधियों को बढ़ावा देना था। अपनी स्थापना के प्रारंभिक काल से ही इस केंद्र ने कई नई रणनीतिक साझेदारियाँ और सहयोगी रिश्ते विकसित किए हैं, जिनमें प्रमुख रूप से, डाउ केमिकल कंपनी, स्टारफार्मा होल्डिंग्स लिमिटेड, पॉलीसाइंसेस इंकॉर्पोरेशन, फाइजर, मल्टीजेन डायग्नोस्टिक्स, एशलैंड केमिकल्स, डेंड्रिटेक नैनोटेक्नोलॉजी इंकॉर्पोरेशन, नैनोसिंथॉन्स तथा यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन शामिल हैं। वर्ष 2002 से डॉ. टॉमालिया ही संस्था के “सीईओ एवं निदेशक” रहे और अब डॉ. मयंक सिंह “निदेशक” एवं स्वयं “सीईओ” के रूप में सेवाएं देंगे। वर्तमान में डॉ. टोमालिया पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय और वर्जीनिया कामनवेल्थ विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में भी कार्यरत हैं।
आपको बताते चले की, डॉ. मयंक ने अपनी प्रारंभिक फार्मेसी शिक्षा बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी (भारत) से प्राप्त की। इसके उपरांत, उन्होंने हैदराबाद स्थित सीएसआईआर-भारतीय रासायनिक प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईसीटी), से फार्मास्युटिकल साइंस और प्रौद्योगिकी में पीएचडी की उपाधि अर्जित की है। साथ ही, उन्होंने नलसर विश्वविद्यालय, हैदराबाद से पेटेंट कानून में स्नातकोत्तर डिप्लोमा भी पूर्ण किया है। डॉ. मयंक मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के ग्राम सभा बगही, विकास खंड नारायणपुर, चुनार के रहने वाले हैं, जिनकी उत्कृष्ट क्षमताओं को कोविड-19 महामारी के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका के आप्रवासन सेवाओं द्वारा पहचाना गया था। डॉ. मयंक के वैज्ञानिक योग्यता और शोध कार्य को अमेरिका के प्रतिष्ठित वैज्ञानिक संगठन सिग्मा-षि द्वारा भी मान्यता दी गई है। इनकी वैज्ञानिक अनुसंधान में उत्कृष्ट योगदान के लिए लंदन की रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री द्वारा “चार्टर्ड साइंटिस्ट” के रूप में लंदन के विज्ञान परिषद् में शामिल किया गया है। हाल ही में डॉ. मयंक सिंह को अमेरिका के प्रसिद्ध बायोग्राफिकल डायरेक्टरी (हूज़ हूँ इन अमेरिका) में भी शामिल किया गया है, जो उनके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त वैज्ञानिक योगदानों को दर्शाता है। आपको बताते चले की, वर्तमान में डॉ. मयंक “विश्व स्वास्थ्य संगठन”, जिनेवा-स्विट्ज़रलैंड के सार्वजनिक सलाहकार हैं। और “सेंट्रल मिशिगन यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिसिन” में ग्रेजुएट फैकल्टी एवं एडजंक्ट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। इसके अलावा, वह यूनाइटेड किंगडम-लंदन में रासायनिक जीव-विज्ञान / बायोमिमेटिक रसायन विज्ञान के प्रतिष्ठित फ़ैकल्टी के रूप में भी संयुक्त-नियुक्ति रखते है। डॉ. मयंक कई पेटेंट, शोध पत्र और पुस्तक अध्यायों के लेखक भी हैं। डॉ. मयंक को भारत, अमेरिका, लंदन, कनाडा, जापान, पुर्तगाल और स्विट्ज़रलैंड से विभिन्न पुरस्कार और मान्यताएं मिली हैं।
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